Tuesday, September 6, 2016

गांधी हत्या: पटेल ने दी थी संघ को क्लीन चिट

आरएसएस के लोगों पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाने, मुकरने और फिर मानहानि केस में डटने का फैसला लेकर राहुल गांधी ने बहुत समझदारी का परिचय नहीं दिया है। एक कुशल राजनेता के लक्षण यह होते हैं कि पहले तो वह बोलता ही तौल कर है और गलती से कुछ गड़बड़ हो जाए तो माफी मांगने से नहीं हिचकता। राहुल ने इनमें से किसी भी तरह की समझदारी नहीं दिखाई, हालांकि वह इसके लिए जाने भी नहीं जाते। राहुल ने सीधे तौर पर आरएसएस से जुड़े लोगों को महात्मा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। उनके इस आरोप में कितनी सच्चाई है, इसके लिए हमें कुछ तथ्यों पर नजर डालनी होगी।

महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर लगे प्रतिबंध का हवाला देते हुए वामपंथी इतिहासकार इस मामले में आरएसएस को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। लेकिन, इससे बड़ा तथ्य यह रहा है कि आरएसएस पर जिस नेहरू सरकार ने बैन लगाया और गुरु गोलवलकर को गिरफ्तार किया था, उसी सरकार ने संघ पर से बैन हटाया भी था। कुछ लोग सरदार पटेल और नेहरू के बीच हुए पत्र व्यवहार के हवाले से संघ को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश करते रहे हैं। इस थिअरी में बड़ा झोल है। यह सच है कि पटेल ने नेहरू को लिखे एक पत्र में आरएसएस पर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने का आरोप लगाया था। सिर्फ इसके आधार पर ही वामपंथी लेखक संघ पर गांधी हत्या का कलंक लगाने की कोशिश में रहते हैं।

पटेल ने दी थी आरएसएस को क्लीन चिट

दरअसल, यह तथ्यों की चोरी का मामला है। सरदार पटेल ने गृह मंत्री की हैसियत से प्रधानमंत्री नेहरू को 27 फरवरी, 1948 को लिखे पत्र में कहा था, ‘आरएसएस इस सबमें शामिल नहीं था। यह हिंदू महासभा की एक अतिवादी विंग थी, जिसने सावरकर के नेतृत्व में गांधी हत्या की साजिश रची।’उनका यह पत्र सीधे तौर पर आरएसएस को क्लीन चिट है। हालांकि अदालत में विनायक दामोदर सावरकर के खिलाफ लगे आरोप भी साबित नहीं हो सके। खास बात यह है कि सावरकर ने अपना मुकदमा खुद लड़ा और तथ्यों की जंग में जीत गए।

जुलाई, 1948 में संघ से बैन हटाने की मांग करते हुए नेहरू मंत्रीमंडल के सदस्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पटेल को पत्र लिखकर संघ पर लगे बैन को हटाने और मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग को ‘देशद्रोही’ बताया था। इस पत्र के जवाब में पटेल ने लिखा था, ‘आरएसएस की गतिविधियां सरकार और राज्य के समक्ष खतरा पैदा करती हैं। जहां तक मुस्लिमों की बात है, मैं आप से पूरी तरह सहमत हूं कि कुछ लोग देश के प्रति वफादार नहीं हैं और खतरा साबित हो सकते हैं।’

जाहिर है कि कांग्रेस के नेता होने की वजह से पटेल की कुछ सीमाएं थीं और वह आरएसएस का खुलकर समर्थन नहीं कर सकते थे। आखिर वह दूसरे ध्रुव पर जो खड़े थे। लेकिन, वामपंथी इतिहासकार इस तथ्य के एक सिरे को ही पकड़ते हैं, संघ की निंदा को तो उन्होंने हाथोंहाथ लिया, लेकिन मुस्लिम समुदाय के कट्टरवादी तबके के बारे में की गई उनकी टिप्पणी को हजम कर गए। यह सभी तथ्य सरदार पटेल पर प्रकाशित पुस्तक ‘कलेक्टड वर्क्स ऑफ सरदार वल्लभभाई पटेल’ में मौजूद हैं। लेकिन, वामपंथी इन तथ्यों का सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करते रहे हैं।

कट्टर मुस्लिमों को पटेल ने दिया था पाक जाने का ऑफर

6 जनवरी, 1948 को लखनऊ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पटेल ने कट्टरवादी मुस्लिमों को चेताते हुए कहा, ‘आप लोग कश्मीर में पाकिस्तान के हमले की निंदा क्यों नहीं करते? आप दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकते। आप को एक घोड़ा चुनना होगा। जो लोग पाकिस्तान जाना चाहते हैं, वह जा सकते हैं और वहां शांति से रह सकते हैं।’

गांधी हत्या पर गठित आयोग ने दी क्लीन चिट

महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े तथ्यों की पड़ताल के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1965 में जेएल कपूर आयोग गठित किया था। इस आयोग ने 1969 में रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें आरएसएस या आरएसएस के लोगों (जैसा राहुल गांधी का कहना है) को किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं माना गया। यहां तक कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से सीआईडी और पुलिस कमिश्नर से मांगी गई रिपोर्ट में भी संघ पर कोई आरोप नहीं लगा। आयोग ने जिन लोगों से गवाही ली, उनमें से किसी ने भी गांधी हत्या के मामले में संघ की संलिप्तता को लेकर कोई बात नहीं की। अलबत्ता, संघ को विभाजन की त्रासदी में पाकिस्तान से लुट-पिटकर आने वाले हिंदुओं की मदद करने वाला संगठन करार दिया।

(नवभारत टाइम्स डॉट कॉम में प्रकाशित ब्लॉग)

Thursday, September 1, 2016

गिलगित-बाल्टिस्तान: पाकिस्तानी उत्पीड़न का स्थान

जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार और सेना की भूमिका के मद्देनजर स्थानीय लोगों के मानवाधिकारों की अक्सर बात की जाती रही है। एक तबका तो ऐसा है, जो जम्मू-कश्मीर की तथाकथित आजादी के नाम पर अलगाववादियों को भी बौद्धिक समर्थन देता रहा है। लेकिन, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जम्मू-कश्मीर भी एक ऐसा सिक्का है, जिसके दो पहलू जगजाहिर हैं, पहला है भारत के हिस्से का जम्मू-कश्मीर और दूसरा पाकिस्तान द्वारा जबरन कब्जाया गया जम्मू-कश्मीर। निश्चित तौर पर एक देश के तौर पर यह हमारी असफलता है कि जम्मू-कश्मीर के एक तबके को हम आज भी भरोसे में नहीं ले पाए हैं।

लेकिन, दूसरा पहलू इससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिस पर हमारे यहां बहुत कम चर्चा होती है। रणनीतिक तौर पर सरकारों की नजरों से ओझल होने के चलते हम भी पाकिस्तान द्वारा कब्जाए जम्मू-कश्मीर को भूल से गए हैं। लेकिन, पिछले दिनों जब एक बार फिर लंबे समय बाद केंद्र सरकार की ओर से इस मुद्दे को उठाया गया तो कुछ हलचल दिखी है। खुद प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान और पीओके (पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर) में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाया है। लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं कि पाकिस्तान यहां किस तरह स्थानीय लोगों को कुचलने की कोशिश कर रहा है। आइए आज बात करते हैं, गिलगित-बाल्टिस्तान की।

करीब 15 लाख की आबादी और 72,494 स्क्वेयर किलोमीटर क्षेत्रफल वाले गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में पीओके के उत्तरी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। पांच जिलों में बंटे इस उत्तरी क्षेत्र की बड़ी आबादी शियाओं और इस्माइलियों की है, जिन्हें सुन्नी इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान में लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। इस इलाके के मूल निवासी शियाओं, इस्माइलियों और विभिन्न जनजातियों के उत्पीड़न की कहानी लंबी है। पाक ने यहां के लोगों को हमेशा ही सांप्रदायिक आधार पर लड़ाने की कोशिश की है ताकि उसके उत्पीड़न के खिलाफ एकजुटता न हो सके।

अब तक के सबसे कट्टर इस्लामिक राष्ट्रपतियों में से एक जिया-उल हक के मार्शल लॉ के दौर में इस्लाम के नाम पर यहां शरीयत लागू कर दिया गया। 1982 के बाद से ही यहां सांप्रदायिक हिंसा का दौर जारी है। 1988 में पाक सेना ने यहां कई शिया प्रदर्शनकारियों को जिंदा फूंक दिया था। 1996 में बाहरी लोगों को बसाने का विरोध कर रहे शियाओं पर पाक सेना ने ताबड़तोड़ फायरिंग की थी। यहां पहली बार अक्टूबर 1994 में चुनाव हुए थे, जिसके बाद 26 सदस्यीय नॉर्दन एरियाज एग्जिक्यूटिव काउंसिल का गठन किया गया। लेकिन, मार्च 1995 में कहा गया कि इस काउंसिल के पास किसी तरह के कानून को पारित करने का अधिकार नहीं होगा, यह काउंसिल सिर्फ सलाह दे सकती है।

इस्लामाबाद से ही चलता है शासन

गिलगित-बाल्टिस्तान की सत्ता की कमान पाक सरकार के अंतर्गत काम करने वाले कश्मीर एवं नॉर्दन एरियाज अफेयर्स मिनिस्ट्री के पास है। इसका मुखिया इस्लामाबाद में स्थिति पाक सरकार का जॉइंट सेक्रटरी होता है, जिसके पास सभी मामलों के निपटारे की ताकत होती है। यहां की सिविल, पुलिस और सुरक्षा सेवाओं में पाकिस्तानियों को ही नियुक्ति दी जाती है। न्यायिक आयुक्त की ओर से सुनाया गया कोई भी फैसला यहां अंतिम होता है, इसके खिलाफ कहीं अपील नहीं की जा सकती।

डिमॉग्रफी बदलने में जुटा है पाकिस्तान

पाकिस्तान की कोशिश है कि यहां कि आबादी के संतुलन को पूरी तरह अपने पक्ष में कर लिया जाए। स्थानीय लोगों को अल्पसंख्यक बनाने की नीति के तहत पाक ने गिलगित और स्कर्दू में बड़े पैमाने पर बाहरी लोगों को जमीन आवंटित की है।  यह यूनाइटेड नेशंस कमिशन फॉर इंडिया ऐंड पाकिस्तान के प्रस्तावों का भी उल्लंघन है। यह बाहरी लोग स्थानीय समुदायों की अपेक्षा आर्थिक तौर पर समृद्ध हैं और सरकार के समर्थन से इनका उत्पीड़न कर रहे हैं। 2001 की जनगणना के मुताबिक बाहरी और स्थानीय लोगों की जनसंख्या का अनुपात 3:4 हो गया है, जो करीब एक दशक पहले ही 1:4 था। पंजाबी और पख्तून मूल के लोगों की यहां तेजी से बढ़ती आबादी के चलते स्थानीय लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

भारत का सिरदर्द बढ़ा रहा है चीन का दखल

1963 में पाकिस्तान ने सीमा समझौते के नाम पर गिलगित बाल्टिस्तान के रणनीतिक तौर पर बेहद महत्पूर्ण 5,180 स्क्वेयर किलोमीटर हिस्से को चीन को सौंप दिया था। पाकिस्तान ने इस इलाके को काराकोरम हाईवे बनाने के नाम पर चीन को सौंपा है। इस तरह चीन को पेइचिंग से कराची तक ‘लैंड लिंक’ की सुविधा मिल गई। अब दोनों देशों के बीच इस इलाके को चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरीडोर के तौर पर विकसित करने का करार हुआ है। इसमें स्थानीय लोगों से औने-पौने दामों पर जमीन लेकर उन्हें खदेड़ा जा रहा है। यहां हालिया हिंसा और विरोध प्रदर्शनों की बड़ी वजह चीन प्रायोजित परियोजनाओं के लिए अधिग्रहण ही है।

पाक सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक भारत के हिस्से में गिलगित-बाल्टिस्तान

पाकिस्तान के संविधान में गिलगित-बाल्टिस्तान के स्टेटस के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। हालांकि कश्मीर को विवादित राज्य बताया गया है। नॉर्दन एरियाज यानी गिलगित बाल्टिस्तान के स्टेटस को लेकर दायर की गई एक याचिका की सुनवाई करते हुए पीओके हाईकोर्ट ने मार्च 1993 में एक फैसले में पाक सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था की तीखी आलोचना करते हुए कहा था कि इस इलाके की सत्ता पीओके सरकार के हाथ होनी चाहिए और पाक सरकार को इसकी मदद करनी चाहिए। इस फैसले के खिलाफ पाक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस पर सुनवाई करते हुए 14 सिंतबर, 1994 को पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘उत्तरी क्षेत्र भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर राज्य के हिस्से हैं। यह आजाद कश्मीर यानी पीओके का हिस्सा नहीं हैं जैसा कि आजाद कश्मीर के अंतरिम संविधान ऐक्ट 1974 में कहा गया है।’

(नवभारत टाइम्स डॉट कॉम के ब्लॉग में प्रकाशित)