Sunday, March 6, 2011

करूणानिधि का सियासी पैंतरा

   तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करूणानिधि की पार्टी द्रमुक ने ५ मार्च को यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया. करूणानिधि ने सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा करते हुए, अपनी पार्टी के छह मंत्रियों द्वारा इस्तीफा दिए जाने का भी ऐलान कर दिया. करूणानिधि के इस सियासी पैंतरे ने यूपीए सरकार की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पास द्रमुक के २१ सांसदों द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद जरूरी २७२ सीटों के मुकाबले, २५६ सीटें ही रह जायेंगी. जो सरकार की सेहत के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता है. वर्तमान में यूपीए सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन द्रमुक के इस पैंतरे के बाद सरकार की निर्भरता सपा, बसपा और राजद जैसे दलों पर बढ़ जाएगी. कांग्रेस को अगले ही वर्ष राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण राज्य उत्तरप्रदेश में भी चुनावों का सामना करना है. इसलिए कांग्रेस भी नहीं चाहती है की उसकी निर्भरता इन दलों पर बढे. लिहाजा द्रमुक के समर्थन वापस लिए जाने से, सरकार की स्थिरता और विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा हो गया है. करूणानिधि ने समर्थन वापस लेने का ऐलान करते हुए, कांग्रेस पर गठबंधन धर्म का पालन न करने का आरोप लगाया है. लेकिन करूणानिधि के समर्थन वापसी के फैसले के पीछे कई अन्य महत्वपूर्ण कारण भी मौजूद हैं. द्रमुक के समर्थन वापसी के फैसले के पीछे राजा के खिलाफ की गयी कार्रवाई ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. द्रमुक को इस बात की शिकायत थी की कांग्रेस ने राजा को ही बलि का बकरा बनाया है. 
                       ध्यान रहे की द्रमुक ने यूपीए सरकार को उस वक़्त भी ब्लैकमेल करने कि कोशिश की थी, जब उसने सरकार से बाहर रहने का फैसला लिया था. द्रमुक कि इस ब्लैकमेलिंग कि वजह से ही कांग्रेस को झुकते हुए राजा को दूरसंचार मंत्रालय सौंपने का फैसला लेना पड़ा था. करूणानिधि ने राजा पर कार्रवाई किये जाने को लेकर कई बार ऐतराज जताया था, लेकिन अंततः उन्हें राजा के खिलाफ कार्रवाई कि मजूरी देनी ही पड़ी थी. 
कांग्रेस पार्टी ने भी करूणानिधि को सबक सिखाने  का मौका पा लिया. जिसके बाद कांग्रेस पार्टी के दबाव में सीबीआई ने करुणा परिवार के स्वामित्व वाले चैनल कलैग्नर टीवी के कार्यालय पर भी छापेमारी की थी. 
कांग्रेस पार्टी ने यह सभी कदम द्रमुक को दबाव में लाने के लिए और तमिलनाडु में चुनावों में अधिकतम सीटें हथियाने के लिए उठाये थे. लेकिन कांग्रेस कि रणनीति का जवाब देते हुए राजनीति के माहिर खिलाड़ी करूणानिधि ने समर्थन वापसी का नया दांव चला है. करूणानिधि के इस सियासी पैंतरे ने कांग्रेस को निश्चित ही दबाव में ला दिया है. अब तक विपक्ष के हमलों से परेशान कांग्रेस के लिए यह एक नयी सियासी मुसीबत है. जिससे पार पाना कांग्रेस रणनीतिकारों के लिए आसान नहीं होगा. तमिलनाडु  में अपने जनाधार को बढ़ाने कि आस लगाये बैठी कांग्रेस के लिए अब चुनावों कि राह आसान नहीं रहने वाली है. कांग्रेस पार्टी को तमिलनाडु   ही नहीं अन्य राज्यों में भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. अब देखना यह है कि कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकार करुणा के इस सियासी दांव से निपटने का क्या समाधान निकाल पाते हैं?
   

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