Thursday, June 14, 2012

चुनाव सुधार से होगा देश सुधार


भारतीय लोकतंत्र एक चैराहे पर खड़ा है। भारतीय लोकतंत्र स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव तथा विशाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को संपन्न कराने का दावा करता है। किंतु, इसी लोकतंत्र में आम आदमी अब सत्ता के केन्द्रों एवं रोजमर्रा की जिंदगी के बीच बढ़ती दूरी से कुंठित होता जा रहा है। लोकतंत्र के दिखाए सपने और जिंदगी के झंझावतों के बीच आम आदमी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बहुत उत्साहित प्रतीत नहीं होता है। 

ऐसे समय में भारतीय लोकतंत्र में कुछ बुनियादी परिवर्तनों की आवश्यकता है। लोकतंत्र में लोक की बात उसके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि करते हैं। प्रतिनिधि चुनने का काम चुनावों के माध्यम से किया जाता है। निर्वाचन प्रक्रिया को लोकतंत्र की नींव भी कहा जा सकता है। यदि नींव सशक्त होगी, तभी लोकतंत्र का भी सशक्तिकरण हो पाएगा। वर्तमान समय में लोकतंत्र की यह बुनियाद बहुत मजबूत नहीं दिखती है। इसका कारण निर्वाचन प्रक्रिया का अत्यधिक खर्चीला होना एवं बाहुबलियों का दखल है। साथ ही निर्वाचन प्रक्रिया में कुछ नीतिगत खामियां भी हैं, जो लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर रही हैं।

हाल के वर्षों में चुनाव आयोग की सख्ती एवं जनजागरण के प्रयासों से चुनावों में बाहुबल का दखल तो कम हुआ है। लेकिन धनबल का प्रयोग आज भी चिंता का विषय बना हुआ है। धनबल के कारण नए लोगों एवं नए विचारों का प्रादुर्भाव असंभव सा हो गया है। चुनावी प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी बढ़ाने एवं राजनीति में आम लोग भी हाथ आजमा सकें, इसके लिए नीतिगत उपायों की आवश्यकता है। सुधार के नाम पर अब तक किए गए अदूरदर्शी प्रयासों ने चुनावों में धनबल के महत्व को और बढ़ाने का ही काम किया है। 

चुनाव आयोग ने स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रयास अवश्य किए हैं। किंतु, चुनाव आयोग के प्रयासों से कोई बड़ा फेरबदल नहीं दिखाई पड़ा है। चुनाव सुधार की दृष्टि से हालिया वर्षों में चुनाव आयोग ने निम्न कदम उठाए हैं- 

- सन 1989 में मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था। जिससे मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई एवं युवा प्रतिनिधित्व को भी बढ़ावा मिला। 

- चुनावी खर्च सीमा में बढ़ोत्तरी कर चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के लिए न्यूनतम खर्च सीमा में वृद्धि कर व्यावहारिक खर्चों की राह को आसान किया। 

- अगंभीर प्रत्याशियों को चुनाव से दूर रखने का प्रयास। चुनाव आयोग ने जमानत राशि में बढ़ोत्तरी कर डमी प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने पर लगाम कसने का प्रयास किया।
- विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर रोक लगाकर आयोग ने चुनावी खर्चे को नियंत्रित करने का प्रयास किया। किंतु, आज भी कोई प्रत्याशी 2 निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकता है। जिससे पुनः चुनाव कराने की आवश्यकता पड़ती है। 

- चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार की सीमा को 3 सप्ताह से घटाकर 2 सप्ताह कर दिया है। आयोग के इस प्रयास से आर्थिक तौर पर कमजोर प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने में सहूलियत मिली है। 

- चुनावों को अपराधीकरण से मुक्त करने के लिए आयोग ने अदालत द्वारा 2 वर्ष से अधिक की सजा पाए आरोपियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का काम किया है।

- अगंभीर उद्देश्यों के लिए पंजीकरण कराने वाली राजनीतिक पार्टियों के पंजीकरण पर लगाम लगाने के लिए आयोग ने पंजीकरण की राशि में बढ़ोत्तरी की। साथ ही पंजीकरण की राशि में भी बढ़ोत्तरी की है।

- आयोग ने आईटी क्षेत्र की मदद से पोलिंग की निगरानी करने का कदम उठाया एवं पार्टियों के बैंक खातों के निरीक्षण करने का भी कदम उठाया है।

- मतदान प्रतिशत बढ़ाने का प्रयास करते हुए आयोग ने मतदाता जागरूकता अभियान भी चलाया है। जिसका परिणाम हुआ है कि मतदान में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। 

- चुनावों के दौरान एक्जिट पोल पर रोक लगाकर आयोग ने चुनाव नतीजों पर किसी विपरीत प्रभाव पड़ने पर रोक लगाने का कार्य किया है।

- पोलिंग के लिए ईवीएम मशीन के प्रयोग ने चुनावों में धांधली पर काफी हद तक लगाम लगी है। वहीं फोटोयुक्त मतदाता सूची ने भी मतदान प्रक्रिया में गड़बड़ी की संभावनाओं को कम किया है। 

चुनाव आयोग के इन प्रयासों से मतदान प्रक्रिया में धांधली की संभावनाएं कम हुई हैं एवं बाहुबलियों से भी निजात मिलती दिखी है। लेकिन सही व्यक्ति जनता का प्रतिनिधित्व कर सके एवं उसका निर्धारण बहुमत की राय से हो सके इसमें अभी भी कई बाधाएं जान पड़ती हैं। 

चुनाव आयोग के प्रयासों से मतदान प्रक्रिया में सुधार आया है। मतदान के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा है। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि चुनाव अब अधिक खर्चीले हो चले हैं। इसका कारण पार्टी स्तर पर लोकतंत्र का अभाव भी है, जिसका असर प्रत्याशी के चयन पर भी पड़ता है। यही कारण है कि लगभग सभी दलों में सत्ता का केन्द्रीकरण बड़ी समस्या बन चुका है। परिवारवाद अपने चरम पर है। राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक तौर पर लोकतंत्र की कमी है। ऐसे में वह पार्टियां सशक्त लोकतंत्र कैसे स्थापित कर सकती हैं, जिनमें खुद ही लोकतंत्र नहीं है। चुनाव आयोग के पास इस समस्या से निपटने के लिए कोई कारगर तरीका नहीं है। जिसके लिए आयोग के पास अधिकारों की भी कमी जान पड़ती है। चुनावों से धनबल, बाहुबल एवं परिवारवाद पर लगाम लगाने के लिए कुछ कड़े उपाय करने की आवश्यकता है। साथ ही आवश्यकता है चुनाव आयोग को अधिक अधिकार देने की ताकि चुनाव आयोग केवल चेतावनी ही न दे बल्कि कार्रवाई भी कर सके। जो इस प्रकार हो सकते हैं-

- कंपनी एक्ट की भांति ही राजनीतिक पार्टियों के लिए भी एक्ट बनाए जाने की आवश्यकता है। इस एक्ट के अंतर्गत ही राजनीतिक पार्टी के गठन की अनिवार्यता एवं समान संविधान तथा नियमावलि तय किए जाने की आवश्यकता है।

- पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्रः वह पार्टियां जो देश को राजनीतिक नेतृत्व देने का कार्य करती हैं, उनमें लोकतंत्र स्थापित हो यह महत्वपूर्ण है। 

- एक ही क्षेत्र से चुनावः चुनावी खर्चे को कम करने के लिए यह आवश्यक प्रतीत होता है कि कोई भी प्रत्याशी केवल एक ही क्षेत्र से चुनाव लड़ सके। 

- सभी चुनावों की समान मतदाता सूचीः पंचायत चुनावों से लेकर देश के आम चुनावों तक के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए। जिससे खर्च में भी कमी आएगी साथ ही गड़बड़ी की भी संभावना भी कम होगी।

- जनसंचार माध्यमों के लिए दिशानिर्देश: चुनावों के दौरान जनसंचार माध्यमों के दुरूपयोग की संभावनाओं को रोकने के लिए दिषानिर्देश तय जाने की आवश्यकता है।

- चुनाव आयोग की निगरानी में संगठन चुनावः पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र हेतु मनोनयन की प्रक्रिया के स्थान पर चुनाव कराए जाने की आवश्यकता है। संगठन के चुनावों को आयोग के पर्यवेक्षक की निगरानी में कराया जाना चाहिए। 

- फंडिंग की निगरानीः चुनावों में काले धन के दुरूपयोग को रोकने के लिए पार्टियों को मिलने वाले चंदे की भी पर्याप्त निगरानी किए जाने की जरूरत है। राजनीतिक पार्टियों को फंडिंग करने वालों को टैक्स में छूट दी जानी चाहिए, ताकि पार्टियों को मिलने वाला पैसा वैध हो और ज्ञात हो। 

- नागरिक सुविधाओं हेतु मतदान अनिवार्यः पासपोर्ट, राशन कार्ड, रेलवे आरक्षण, बीपीएल कार्ड हेतु मतदान प्रमाण पत्र अनिवार्य किया जाना चाहिए। इससे निर्वाचन में मतदाताओं की स्वतः ही भागीदारी बढ़ेगी।
- प्रतिनिधित्व हेतु 51 प्रतिशत मत अनिवार्यः अल्पमत में होने के बाद भी सांसद, विधायक बनने से ही जनप्रतिनिधि जनता के मुददों से अज्ञान रहता है। ऐसी स्थिति में अगले ही दिन अधिक मत प्राप्त करने वाले दो प्रत्याशियों के मध्य चुनाव कराने से बहुमत प्राप्त प्रत्याशी का निर्धारण हो जाएगा।

- चुनाव प्रचार का मिजोरम मॉडल: मिजोरम में एक ही स्थान पर आम सभा के माध्यम से प्रत्याशी अपने विचार एवं कार्ययोजना को नागरिकों के समक्ष रखते हैं। चुनाव प्रचार का यह तरीका प्रचलित पद्धति के मुकाबले कम खर्चीला एवं सरल है। प्रचार के इस तरीके पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। 

- दोषी सिद्ध होने पर सदस्यता निरस्तः वर्तमान में यदि सांसद, विधायक अदालत द्वारा दोषी करार दिया जाता है, तब भी वह अपना कार्यकाल पूरा करता है। अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाने पर तत्काल प्रभाव से संबंधित सदस्य की सदस्यता रदद हो जानी चाहिए। 

भारतीय लोकतंत्र में नागरिकों की आस्था बढ़े इसके लिए उपरोक्त सुझावों पर विचार किए जाने की जरूरत है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र को सशक्त एवं सजीव बनाए रखने के लिए आमल-चूल परिवर्तनों की आवश्यकता प्रतीत होने लगी है। इसकी शुरूआत चुनाव सुधार से ही की जानी चाहिए। 

 (संविधानविद सुभाष कश्यप के व्याख्यान पर आधारित)

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