Wednesday, July 10, 2013

राजस्थान केसरी‘ विजय सिंह ‘पथिक‘

औपनिवेशिक और आधुनिक भारत में किसी भी जनांदोलन का महत्वपूर्ण वाहक पत्रकारिता ही रही है। जनसंचार एवं जनमत निर्माण करने के अलावा भारत में पत्रकारिता ने जनांदोलनों में भी अपना योगदान दिया है।स्वाभाविक है कि वह पत्रकारिता जो क्रांति एवं आंदोलनों का सूत्रपात करेउसके तेवर भी आंदोलनकारी ही होंगे। पत्रकारिता की इसी क्रांतिकारी परंपरा के महत्वपूर्ण पत्रकारों में से एक थेविजय सिंह ‘पथिक
विजय सिंह पथिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में गुलावठी नामक ग्राम में सन 1882 को हुआ था। उनके पिता का नाम हमीर सिंह एवं माता का नाम कमल था। उनका असली नाम भूप सिंह थाकिंतु 1915के लाहौर असेंबली बम कांड के बाद उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए नाम बदलकर विजय सिंह ‘पथिक‘ रख लिया। ‘पथिक‘ के दादा ने भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी प्राणाहुति दी थी। विजय सिंह पर भीअपने दादा का प्रभाव था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पालगढ़ के प्राइमरी स्कूल में हुई। कालेज या स्कूल में पढ़ने का अवसर उन्हें नहीं मिला। प्रारंभिक शिक्षा के पश्चात वे अपनी बड़ी बहन के पास इंदौर चले गए। जहां उनकासंपर्क प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र सान्याल से हुआ। सान्याल जी को ‘पथिक‘ में छिपे क्रांतिकारी गुणों को पहचानने में देर नहीं लगी। जल्द ही ‘पथिक‘ शचीन्द्र सान्याल के क्रांतिकारी संगठन में शामिल हो गए। 
सान्याल और रासबिहारी बोस ‘अभिनव भारत समिति‘ द्वारा देश में सशस्त्र क्रांति की योजना में लगे थे। उन्हीं दिनों राजस्थान में ‘वीर भारत सभा‘ नाम का गुप्त संगठन स्थापित हो चुका था। जिसमें विजय सिंह ‘पथिककी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उसी दौरान राजस्थान में जन-आंदोलन का प्रारंभ किसान आंदोलन के रूप में हुआ। मेवाड़ में बिजौलिया नामक गांव थाजहां से किसान आंदोलन का सूत्रपात हुआ। पथिक जी को किसानों कीदुर्दशा का जब पता चला तो वे बिजौलिया  गए। यहां उन्होंने ‘विद्या प्रचारिणी सभा‘ की स्थापना की। उन्होंने गांव-गांव घूमकर लोगों को संगठित किया और किसान आंदोलन के लिए प्रेरित किया। पथिक किसानों कीसमस्याओं को समाचार पत्रों में छपवाते थे और स्वयं भी लिखकर देते थे। यहीं से उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन की शुरूआत की। 
विजय सिंह ‘पथिक‘ के सफल नेतृत्व में हुए बिजौलिया आंदोलन से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने उन्हें बंबई बुला लिया। बंबई में निश्चय हुआ कि राजस्थान में चेतना जाग्रत करने के लिए वर्धा से एक समाचार पत्रनिकाला जाए। इस पर पथिक जी वर्धा  गए और वहां से ‘राजस्थान केसरी‘ नाम का साप्ताहिक पत्र निकालना शुरू किया। इस पत्र का आर्थिक पक्ष जमनालाल बजाज देखते थे। अपने उत्कृष्ट राष्ट्रीय विचारों औरसरकारी दमन के खिलाफ आवाज उठाने के कारण यह पत्र राजस्थान और मध्य भारत में अत्यंत लोकप्रिय हो गया। ‘राजस्थान केसरी‘ की लोकप्रियता से भयभीत सरकार ने उदयपुर रियासत के 21 जून, 1923 के आदेशमें ‘केसरी‘ के प्रवेश को निषिद्ध बताते हुए लिखा
‘‘लिहाजा जरिए इश्तिहार हाजा हर खास  आम को आगाह किया जाता है कि आयंदा अगर किसी शख्स को प्रतापराजस्थान केसरी और नवीन राजस्थान अखबारों को मंगाना या किसी के पास इन अखबारों का मौजूदहोना या इन अखबारों का कटिंग या हैंडबिल पाया जावेगा तो वह सजा का मुस्तोजिब होगा जिसकी मयाद एक साल सख्त कैद  1,000 रूजुर्माना होगा।‘‘ (भारतीय पत्रकारिता कोषविजयदत्त श्रीधर)
राजस्थान केसरी ने ब्रिटिश सरकार की चूलें हिला दीं। लेकिन कुछ समय बाद पथिक जी और जमनालाल बजाज की विचारधाराओं में तालमेल नहीं बैठ पाया। जिसके कारण ‘राजस्थान केसरी‘ का प्रकाशन बंद करनापड़ा। परिणामस्वरूप पथिक अजमेर  गए और वहां राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की तथा ‘नवीन राजस्थान‘ नाम का साप्ताहिक पत्र शुरू किया। जिसका आदर्श वाक्य था
यश वैभव सुख की चाह नहीं,परवाह नहीं जीवन  रहे।यदि इच्छा है यह हैजग में स्वेच्छाचार दमन  रहे।
बिजौलिया के किसान आंदोलन को ‘नवीन राजस्थान‘ ने पूरा समर्थन दिया। बिजौलिया आंदोलन की सफलता को ‘नवीन राजस्थान‘ ने इन शब्दों में व्यक्त किया-
‘‘पाठकों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि आखिर चार वर्ष के कठिन सत्याग्रह के पश्चात बिजौलिया का फैसला हो गया। इसमें संदेह नहीं कि यह फैसला उठते हुए राजस्थान के लिए एक खास संदेश रखता हैपरंतु इससंबंध में हम आगे लिखेंगे। यहां हम केवल इस शुभ अवसर पर शासक एवं शासितों को बधाई देना चाहते हैं।‘‘ (राजस्थान के भूले-बिसरे पत्रकारआर्येंद्र उपाध्याय)
राजनैतिक चेतना जागृत करने में ‘नवीन राजस्थान‘ ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। जिसका उदाहरण उसका यह संपादकीय है-
‘‘सत्ताधारी इतने चैंके क्यों हैं ? इसलिए  कि राजस्थान रूपी परतंत्रता के महाशमन में स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्जवलित हो गई है। बिजौलिया से निकली हुई आह की चिंगारी ने सारे राजस्थान की सुप्त शक्तियों कोजागृत कर दिया है। निर्मल चंद्रिका मेंप्रफ्फुल मलिका मेंतरंगित नदी मेंकूजित कुटी मेंकुसुमों सौरभ मेंबच्चों के हास्य में और वृद्धों के विश्वास में सब ओर उसी अग्नि की चिंगारियां उड़ती नजर  रही हैं। वे एकजगह बुझाना चाहते हैंवह दस जगह प्रज्जवलित हो उठती हैं। क्यों नहीं बुझती ? इसलिए कि वे अग्नि को अग्नि से बुझाते हैं। उनके ह्दय में स्वार्थ की अग्नि प्रज्जवलित है। उसी को लेकर उस पर डालते हैंकिन्तु वहघृताहुति का काम करती है।‘‘ (राजस्थान के भूले-बिसरे पत्रकारआर्येंद्र उपाध्याय
नवीन राजस्थान‘ से किसान आंदोलनों को इतना बल मिला कि सरकार के लिए इन आंदोलनों को दबा पाना मुश्किल हो गया। अंत में हार कर मेवाड़ में ‘नवीन राजस्थान‘ के आगमन पर रोक लगा दी गई। सरकार नेअपने राजकीय गजट में इस आशय की घोषणा की कि इस पत्र को पढ़नारखना अथवा उसकी पूर्ण या आंशिक सामग्री को प्रचारित-प्रसारित करना अपराध काबिल दस्तन्दाजी माना जाएगा।
सरकार की इस घोषणा के पश्चात विजय सिंह पथिक को ‘नवीन राजस्थान‘ का प्रकाशन बंद करना पड़ा। लेकिन जल्द ही वह ‘तरूण राजस्थान‘ के नाम से सामने आया। जिसने अंग्रेज सरकार की दमनकारी नीतियों कीतीखी आलोचना की। ‘तरूण राजस्थान‘ में मुकुट बिहारी वर्मारामनाथ गुप्त जैसे पत्रकार कार्यरत थे जो बाद में नामवर संपादक हुए। ‘तरूण राजस्थान‘ ने तत्कालीन समय में राजस्थान क्षेत्र में किसान आंदोलनों कोमुखर स्वर देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। 
विजय सिंह ‘पथिक‘ ने पत्रकारिता के वह मापदंड तय किएजो पत्रकारिता की वर्तमान पीढ़ी के लिए आदर्श के समान हैं। उनके कार्यों की प्रशंसा करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था
‘‘पथिक काम करने वाला व्यक्ति हैजबकि दूसरे सब लोग बातूनी हैं। पथिक सैनिकबहादुर और जोशीला हैपरंतु जिददी है‘‘ 
विजय सिंह ‘पथिक‘ ने पत्रकारिता के अलावा लेखक के रूप में भी पहचान बनाई। पथिक जी ने तीस से ज्यादा पुस्तकें लिखी। ज्यादातर लेखन उन्होंने जेल में ही किया। उन्होंने पुराणोंमहाभारत और दूसरे प्राचीन ग्रंथों काअध्ययन करके बारह सौ पृष्ठों का विशाल ग्रंथ तैयार किया। वे गांधीवादी सिद्धांतो एवं नीतियों के अनुसार कार्य करना चाहते थे। 
राजस्थान में जनआंदोलन के अग्रदूत पथिक जी आजादी के बाद भी गांधी जी के निर्देशानुसार कार्य करना चाहते थे। किंतु सरकारी नीतियों के गांधीवादी मार्गों से हटने के कारण वे निराश थे। आजादी के पश्चात सरकारीनीतियों के प्रति वे काफी चिंतित थे। 28 मई, 1954 को महान क्रांतिकारी एवं पत्रकार विजय सिंह ‘पथिक‘ का अजमेर में देहावसान हो गया।   

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