Friday, February 11, 2011

पाक में अमेरिका विरोधी लहर

 पाकिस्तान में इन दिनों अमेरिका विरोधी लहर चल रही है. पाकिस्तानी नेताओं पर इस्लामी कट्टरपंथी लोगों का दबाव है की वे अमेरिकी सेनाओं द्वारा की जा रही कार्रवाई को समर्थन देना बंद करें. इसी दबाव के चलते पाक नेताओं ने अमेरिकी राजनयिक डेविस को रिहा नहीं किया है. जिसके फलस्वरूप अमेरिकी संसद में भी पाक को दी जाने वाली मदद में कटौती की मांग उठी है. इस पूरे प्रकरण को यदि भारतीय नजरिये से देखा जाये तो भारत के लिहाज से यह अच्छा ही रहा है. पाक द्वारा अमेरिकी राजनयिक को रिहा न किये जाने की वजह २६\११ मामले में अमेरिका की सक्रियता है. पाक सेना और कट्टरपंथियों को अमेरिकी अदालत द्वारा जनरल शुजा पाशा को समन भेजना बहुत ही नागवार गुजरा है. जिसके जवाब में पाक ने उसके राजनयिक को रिहा नहीं किया. जिससे लम्बे समय से पाक को दी जाने वाली आर्थिक मदद को रोकने की मांग ने जोर पकड़ा है. भारत के लिहाज से यह बहुत ही अच्छा है की पाक और अमेरिका आमने-सामने हैं, अब भारत को केवल यह देखना है की पाक इस स्थिति से कैसे निपटता है. लेकिन इसमें ध्यान देने वाली बात यह है की अमेरिका मुंबई हमलों को लेकर पाक पर शिकंजा नहीं कस रहा, बल्कि इसका कारण उसके राजनयिक की रिहाई नहीं होना है. इससे पहले भी अमेरिकी अदालत ने भारत की शिकायत पर शुजा पाशा को समन नहीं भेजा था. उसने अमेरिकी नागरिकों की याचिका पर शुजा पाशा को समन भेजा था. पाक पर कसता अमेरिकी शिकंजा भारत की शिकायतों का नतीजा नहीं बल्कि अमेरिका के अपने हितों की वजह से है. ध्यान रहे की अमेरिका ने कभी भारत की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जब तक उसमें उसके हित न हों. इसलिए हमें भी अमेरिका की ओर कभी नहीं देखना चाहिए बल्कि अपने हितों को अधिक महत्व देना चाहिए. अमेरिका से मित्रता हमारी कूटनीति का परिणाम नहीं है, बल्कि इसमें भी अमेरिका के ही हितों की पूर्ति होती है. इसलिए भारत को ध्यान रहना चाहिए की अमेरिका मित्र नहीं बल्कि हित साधक है. जिसके मित्र समय-समय पर बदलते रहते हैं. अमेरिका द्वारा भारतीय राजनयिकों से किया गया व्यवहार, और ताजा प्रकरण जिसमें छात्रों के पैरों में रेडियो टैग बांधने का मामला इसकी ताजा मिसालें हैं. हमें सदा यह ध्यान रखना चाहिए की अमेरिकी हितों के समक्ष हम भी अपने हितों का बलिदान न करें. अपने फैसले अपने हितों को ध्यान में रखते हुए ही लें न की अमेरिकी हस्तक्षेप और मार्गदर्शन से. यही भारत की दीर्घकालिक कूटनीति होनी चाहिए, जिसमे हमारी कूटनीतिक विजय का लक्ष्य छुपा हुआ है.

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