आगामी २८ फरवरी को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी आम बजट पेश करेंगे. इस आम बजट से आम लोगों को बहुत सी उम्मीदें हैं. उम्मीद है प्रणव मुखर्जी का यह बजट लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा. लेकिन दादा के बजट का गौरतलब पहलू यह रहेगा की इसमें किसानों के लिए क्या सहूलियत रहती है. कृषि प्रधान देश भारत में, कृषि ही सरकार को सबसे महत्वहीन क्षेत्र दिखाई देता है. सरकार की इस उपेक्षा का ही परिणाम है कि अन्नदाता, आज मौत को गले लगाने पर मजबूर है. बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ और दक्षिण भारत तक किसान बदहाल दिखाई पड़ता है. इसका कारण कृषि को मुनाफे का सौदा न बनाना है. जिस दिन कृषि मुनाफे का सौदा हो जाएगी किसान मौत की नींद सोने को विवश नहीं होगा. तेजी से घटती कृषि योग्य भूमि और उतनी ही तेजी से बढती औद्योगिकीकरण की नीतियाँ किसानों के गले की फाँस बन गयी हैं. यदि सरकार खाद्य के मामले में आत्मनिर्भरता चाहती है तो उसे किसान हित में कदम उठाने ही होंगे.
किसानों की हितों की रक्षा के लिए जरूरी है की किसानों की आय को बढाने का प्रयास किया जाए. इसके लिए हमें उन्हें सस्ता लोन मुहैया कराने की जरूरत नहीं है, बल्कि फसलों पर लगने वाली लागत घटाने की आवश्यकता है. किसानों की आय में वृद्धि के लिए दलहन की सरकारी खरीद की व्यवस्था करनी चाहिए. जिससे हमारी आयात पर निर्भरता कम होगी और किसान को भी फसल का उचित दाम मिल सकेगा. फलों और सब्जिओं के क्षेत्र में फसल बीमा की नीति को व्यापक पैमाने पर लागू करना होगा. इस कड़ी में जो सबसे महत्वपूर्ण कदम हो सकता वह यह है की प्रत्येक गाँव में खाद्यान्न बैंकों की स्थापना की जाए. जिससे स्थानीय आधार पर राशन की खरीद हो सके, और भंडारण हो सके. जिससे गरीबों में राशन का वितरण आसान हो सके. यह ग्रामीण भारत की सफलता की तस्वीर हो सकता है. हरित क्रांति के बजाय यदि परंपरागत खेती पर निवेश किया जाये तो खेती पर लागत भी घटेगी. साथ ही जमीन की उर्वरकता का क्षरण भी होने से बचेगा. किसानों को कर्ज में छूट से ज्यादा फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की आवश्यकता है. जिस तरह से सरकार औद्योगिक-फ्रैंडली नीति के तहत विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना कर रही है, उसी तरह से विशेष कृषि क्षेत्र की स्थापना करनी होगी. यदि हम देश की अर्थव्यवस्था और किसान को खुशहाल देखना चाहते हैं तो उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण हमें तत्काल रोकना होगा,. कृषि के क्षेत्र की विकास गति को यदि बढ़ाना है तो कृषि को रोजगार से जोड़ना होगा. इसके बाद मनरेगा की आवश्यकता ही ख़त्म हो जायेगी. कृषि को रोजगार से जोड़ने के बाद हमें कुशल श्रमिक प्राप्त होंगे, जो कृषि में संलग्न होंगे. इसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन की गति ही थम जायेगी. लेकिन यह सब तभी संभव है जब हम अपनी आर्थिक नीतियों को औद्योगिक नहीं एग्रीकल्चर फ्रैंडली बनायें. तभी वर्त्तमान केंद्र सरकार आम आदमी की सरकार कहलाने की हकदार होगी. अब देखना यह है की दादा के खजाने से किसानों के लिए कौन सी सहूलियतें निकलकर आती हैं ?
सरकार चाहती है कि किसान का जीवन खेती करते हुए ही बीत जाए तथा उसकी पीढ़िया भी खेतो में ही हल जोतती रहे. उनका स्तर उठ गया तो वे खेती करने कि बजाय नौकरियों की तलाश में पलायन करेगे. आप सही है कि खेती में रोजगार कि संभावनाए तलाशनी होगी.
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