आज के समय में आधुनिकता और तरक्की के कई पैमाने हैं. जिसमें से एक है नैनो फैमिली. 'बच्चे दो ही अच्छे' और 'छोटा परिवार सुखी परिवार' के जुमलों के बीच ही आज की दुनिया सिमट कर रह गयी है. बच्चे कम तो हुए ही दिल में जगह भी कम हो गयी. अब तो बूढ़े माँ-बाप भी नैनो फैमिली के दायरे में नहीं आते हैं. उन्हें संयुक्त परिवार के खाते में डाल दिया गया है. संयुक्त परिवार में रहना लोगों को पसंद नहीं, सो माँ-बाप हो गए उनके छोटे परिवार से दूर. संचार क्रांति के युग में यूँ तो लोग हर वक़्त संपर्क में रहते हैं. लेकिन संवेदनाओं से परे ही रहते हैं. माता-पिता की आवश्यकता और अपेक्षाएं क्या हैं अब इससे मतलब नहीं है. जब माता-पिता से ही मतलब नहीं है, तो यदि दादा-दादी हैं तो उन्हें कौन पूछे. ऐसे में इस नैनो फैमिली का चलन बुजुर्गों पर लगता है कुछ ज्यादा ही भारी पड़ा है. आए दिन वृद्ध जनों को प्रताड़ित करने की घटनाएँ सामने आती ही रहती हैं. इस नैनो फैमिली के अनेकों दुष्प्रभाव हैं. नैनो फैमिली में रहने के कारण ही बच्चे भी गलत आदतों का शिकार हो रहे हैं. इसका कारण घर में बच्चों की संख्या कम होने की वजह से उनको दिया जाने वाला अत्यधिक लाड़-प्यार है. जिसके कारण बच्चो में आत्मनिर्भरता की भावना विकसित नहीं हो पा रही है. संयुक्त परिवार में ऐसा नहीं होता था, क्योंकि सभी सदस्यों को मिलने वाली सुविधाएँ और उनके काम आपस में बंटे होते थे. जिससे लोगों में सामूहिक जीवन जीने के कारण, सामजिक भावना रहती थी. आज ऐसा नहीं रह गया है. किसी को कुछ बर्दाश्त नहीं है, गुस्से का प्रदर्शन तो जैसे अनिवार्य हो गया है. इसकी वजह यह है कि लोगों ने परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करना ही भुला दिया है.
बुजुर्गों और बच्चों के बारे में बात करने के बाद, अब करते हैं युवाओं और प्रौढ़ों की बात. माता-पिता और बड़े जनों से दूर होने के कारण युवाओं के पास यह मौका ही नहीं है कि अपनी समस्याएँ उनसे बताएं. इस कमी के कारण वे हमेशा तनाव में ही रहते हैं. यही तनाव उनकी दिनचर्या बन गया है और चिड़चिड़ापन उनका स्वभाव. यही कारण है की सहनशीलता को अब कमजोरी का पर्याय माना जाने लगा है. लेकिन फिर भी नैनो फैमिली का क्रेज है और बड़प्पन है. बड़प्पन यहाँ तक है कि यदि कोई लड़की के लिए वर तलाशता है तो एक लड़के वाले घर को ही तलाशता है. यदि माँ-बाप में से कोई एक न हो तो वह घर सबसे बेहतर है. लड़की सास-बहु के सीरियल से मुक्ति पा जाएगी. जहाँ परिवार बसने से पहले ही यह भावना वहां परिवार उजड़ते कितनी देर लगेगी. विवाह होते ही हमसफ़र निकल पड़ते हैं, अपने जीवन सफ़र पर. पीछे रह जाते हैं उन पर आश्रित माता और पिता. जो कि उनकी नैनो फैमिली के दायरे से ही बाहर हैं. माता-पिता को पता ही नहीं लगता उनकी लाठी कब उनसे छिटककर दूर चली गयी. अब तो नैनो फैमिली को ध्यान में रखते हुए नैनो कार और नैनो फ्लैट भी बाजार में उतार दिए गए हैं.
अर्थात नैनो फैमिली के गहरे दुष्प्रभाव हैं. मैं तो यही कहूँगा की जिस नैनो फैमिली के कारण बच्चे,युवा से लेकर बुजुर्ग तक परेशान हों उससे क्या लाभ. तो फिर लौट आते हैं, अपनी दादी माँ के परिवार में जहाँ की सबकी समस्याओं का समाधान है. किसी की लाइफ में नहीं कोई व्यवधान है. बच्चा है या जवान है संयुक्त परिवार में ही सबकी शान है.
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