आदिवासी सम्मलेन से मिशनरी भयभीत क्यों. . . .
९ और १० फरवरी को मंडला में हुए नर्मदा सामाजिक कुम्भ का मिशनरी के लोगों ने प्रबल विरोध किया था. मिशनरी वालों ने मध्य प्रदेश सरकार से सुरक्षा कि गुहार भी लगाई थी. मिशनरी के लोगों को सुरक्षा से ज्यादा, अपने मतान्तरण के एजेंडे कि चिंता सता रही है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर मंडला में हुए सामाजिक कुम्भ से आदिवासिओं को हिन्दू समाज कि मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया गया है. आदिवासी क्षेत्रों में संघ के कार्यकर्ता अब तक वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से सेवा कार्य करते आये हैं. लेकिन इतने बड़े पैमाने पर आदिवासिओं का सम्मलेन संघ ने पहली बार आयोजित किया है. इस सम्मलेन के माध्यम से संघ का प्रयास है कि मतांतरित आदिवासिओं को पुनः हिन्दू धरम में वापसी दिलाई जाये. यह किसी मायने में सही भी है क्योंकि लालच वश ईसाई बने लोग हिन्दू धर्म में यदि पुनः वापसी करते हैं तो मतान्तरण ही नहीं राष्ट्रान्तरण होने से बच सकेगा.
कोई व्यक्ति जब हिन्दू धर्म से ईसाई मत में मतांतरित हो जाता है, तो वह अपनी जड़ें भारत भूमि से ज्यादा वैटिकन सिटी में तलाशने लगता है. मतांतरित हुए लोगों के लिए भारत पुण्यभूमि नहीं रह जाता है, उनकी आस्था हरिद्वार से ज्यादा वैटिकन सिटी और येरुशलम में हो जाती है. मतान्तरण कि सबसे बड़ी बुराई यही है, जब मतान्तरण कि आड़ में राष्ट्रान्तरण कि साजिश होने लगती है. इसीलिए मिशनरी के लोगों ने सुरक्षा जैसा कुतर्क देकर सामाजिक कुम्भ पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है. दलित ईसाई और दलित मुसलमान कि परिभाषा देकर आरक्षण कि मांग करना भी मतांतरण के प्रयासों में तेजी लाने का ही काम है. क्योंकि आरक्षण से दलितों और आदिवासिओं को आर्थिक संरक्षण मिलता है, और सामाजिक प्रोत्साहन उनको मतान्तरण के माध्यम से मिल जाता है. सामाजिक समता का आश्वासन देकर मतान्तरण करवाने वाले लोग उनको दलित का ही दर्जा देकर अपने समाज में रखते हैं. इसीलिए उनको भय है कि यदि संघ अपनी मुहीम में कामयाब हो जाता है, तो आदिवासिओं का मिशनरी वालों से मोहभंग हो जाएगा. जिसके कारण उनकी मतान्तरण के माध्यम से भारत का राष्ट्रान्तरण करने के प्रयासों को सफलता नहीं मिल पाएगी. मिशनरी वालों का संघ द्वारा आयोजित नर्मदा सामजिक कुम्भ पर सवाल खड़े करने का केवल यही एक पहला और आखिरी कारण था.
९ और १० फरवरी को मंडला में हुए नर्मदा सामाजिक कुम्भ का मिशनरी के लोगों ने प्रबल विरोध किया था. मिशनरी वालों ने मध्य प्रदेश सरकार से सुरक्षा कि गुहार भी लगाई थी. मिशनरी के लोगों को सुरक्षा से ज्यादा, अपने मतान्तरण के एजेंडे कि चिंता सता रही है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर मंडला में हुए सामाजिक कुम्भ से आदिवासिओं को हिन्दू समाज कि मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया गया है. आदिवासी क्षेत्रों में संघ के कार्यकर्ता अब तक वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से सेवा कार्य करते आये हैं. लेकिन इतने बड़े पैमाने पर आदिवासिओं का सम्मलेन संघ ने पहली बार आयोजित किया है. इस सम्मलेन के माध्यम से संघ का प्रयास है कि मतांतरित आदिवासिओं को पुनः हिन्दू धरम में वापसी दिलाई जाये. यह किसी मायने में सही भी है क्योंकि लालच वश ईसाई बने लोग हिन्दू धर्म में यदि पुनः वापसी करते हैं तो मतान्तरण ही नहीं राष्ट्रान्तरण होने से बच सकेगा.
कोई व्यक्ति जब हिन्दू धर्म से ईसाई मत में मतांतरित हो जाता है, तो वह अपनी जड़ें भारत भूमि से ज्यादा वैटिकन सिटी में तलाशने लगता है. मतांतरित हुए लोगों के लिए भारत पुण्यभूमि नहीं रह जाता है, उनकी आस्था हरिद्वार से ज्यादा वैटिकन सिटी और येरुशलम में हो जाती है. मतान्तरण कि सबसे बड़ी बुराई यही है, जब मतान्तरण कि आड़ में राष्ट्रान्तरण कि साजिश होने लगती है. इसीलिए मिशनरी के लोगों ने सुरक्षा जैसा कुतर्क देकर सामाजिक कुम्भ पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है. दलित ईसाई और दलित मुसलमान कि परिभाषा देकर आरक्षण कि मांग करना भी मतांतरण के प्रयासों में तेजी लाने का ही काम है. क्योंकि आरक्षण से दलितों और आदिवासिओं को आर्थिक संरक्षण मिलता है, और सामाजिक प्रोत्साहन उनको मतान्तरण के माध्यम से मिल जाता है. सामाजिक समता का आश्वासन देकर मतान्तरण करवाने वाले लोग उनको दलित का ही दर्जा देकर अपने समाज में रखते हैं. इसीलिए उनको भय है कि यदि संघ अपनी मुहीम में कामयाब हो जाता है, तो आदिवासिओं का मिशनरी वालों से मोहभंग हो जाएगा. जिसके कारण उनकी मतान्तरण के माध्यम से भारत का राष्ट्रान्तरण करने के प्रयासों को सफलता नहीं मिल पाएगी. मिशनरी वालों का संघ द्वारा आयोजित नर्मदा सामजिक कुम्भ पर सवाल खड़े करने का केवल यही एक पहला और आखिरी कारण था.
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