भारत के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के शासनकाल में हुए अनर्थों का जवाब देने के लिए, प्रधानमंत्री १६ फरवरी को मीडिया से मुखातिब हुए. प्रधानमंत्री ने कहा की भ्रष्टाचार से लोगों का सरकार से भरोसा उठ गया है. महंगाई की समस्या जरूर है और इससे निजात पाने के प्रयास किये जा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने देश की जनता को विश्वास में लेने का प्रयास करते हुए यह सब बातें कहीं. लेकिन सबसे गौरतलब और विवादस्पद विषय यह रहा की उन्होंने गरीब लोगों को दी जाने वाली सब्सिडी और राजा के महाघोटाले की तुलना कर दी. अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को गरीबों की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी और अनर्थकारी राजा के टू जी स्पेक्ट्रुम घोटाले में कोई अंतर नजर नहीं आता है. सरकार के रणनीतिकारों ने सरकार की साख को बचाने के लिए पूरी तैयारियां कर रखी थीं . इसी को ध्यान में रखते हुए केवल सरकार समर्थक इलेक्ट्रानिक मीडिया को ही प्रधानमंत्री से मुखातिब होने की अनुमति दी गयी. लेकिन इस सारी रणनीति पर पानी फिर गया जब मनमोहन सिंह ने सब्सिडी और घोटाले को एक ही सिक्के के दो पहलू बता दिया. प्रधानमंत्री ने मीडिया से को भी यह नसीहत दी की वह ऐसी खबरें न बनाये जिससे देश की छवि ख़राब हो. प्रधानमंत्री ने कहा की कुछ गड़बड़ियाँ जरूर हुईं लेकिन प्रयास किये जा रहे हैं. प्रधानमंत्री की यह शिकायत की मीडिया की वजह से भ्रष्टाचार की ब्रांडिंग हो रही है, यह समस्या से दूर भागने का एक असफल प्रयास है. प्रधानमंत्री को यह ध्यान रहना चाहिए की मीडिया के ही कारण राजा कुछ हद तक शिकंजे में फंसते नजर आ रहे हैं. कलमाड़ी के खिलाफ जांच चल रही है. सच्चाई यह भी है की मीडिया जब तक इन मामलों को लेकर हो हल्ला मचाएगा तभी तक इन पर कुछ दिखावे की कार्रवाई होगी. उस के बाद तो यह दिखावे की कार्रवाई भी नहीं होनी है. इसलिए प्रधानमंत्री को चाहिए को वो मीडिया को आइना दिखाने के बजाए अपनी सरकार को आइना दिखाएँ . घोटालेबाजों की पूरी लॉबी के चंगुल से देश की अर्थव्यवस्था को बचाने का प्रयास करें. प्रधानमंत्री यदि सरकार की छवि को बचाना चाहते हैं तो उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सर्जरी करनी होगी. केवल फेरबदल से काम अब चल पायेगा ऐसा लगता नहीं है. इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यदि जनता के मन को मोहना है, तो गंभीरता से प्रयास करने होंगे. यह उनकी जिम्मेदारी है जिसे किसी और पर नहीं डाला जा सकता है.
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